Wednesday, November 2, 2011

मौन और शब्द

          • कोई चुप्पी मौन नहीं होती.
            चीखते उद्गारों पे लगा प्रतिबन्ध होता है मौन.

            शब्दों की अजीब नगरी में छुपा सच होता है मौन
            शांत, गंभीर विशेषणों की चाशनी में आरोपित
            किसी अल्हड़ व्यक्तित्व का सच होता है मौन .
            हर विस्मृत की गई आवाज़ की अनुगूंज होता है मौन .

            शब्द मात्र छलावा है
            धोखा, फरेब , झूठ .
            सृजन मात्र है उन तरकीबों का
            जिनसे मौन पर पर्दा डाला जा सके ,
            जिनसे इंगित चेष्टाओं के गाम्भीर्य पे
            मतलब की बात थोपी जा सके .

            शब्द बांध नहीं पाते
            जज़्बात और आरोपित लक्ष्य को .
            मात्र असफल कोशिश होते हैं शब्द
            मन से गुण को पाटने वाले संकरे पुल
            जहाँ सिद्धांतो के चढ़ावे पे
            भेंट चढ़ जाती हैं कई अभिव्यक्तियाँ .

            जैसे परदेस में बहते आंसू
            सिसकियों की भाषा नहीं बन पाते
            वो टूट जाते हैं
            निस्सार सामाजिक संबोधनों में .

            वैसे ही जैसे वो मजबूत कंधे
            नहीं बन पाते बिखरे उन केशों का आलंबन .
            जैसे शर्माती सर्दियों की धूप
            नहीं चूम पाती पूरे आँगन को .

            शब्द होते ही हैं अपूर्ण
            मौन का एक लघु , पेचीदा परिचय .

            मौन होता है सच
            शब्द चीखता असत्य ...