नदियों और ऋचाओं की बातें छोड़ो न। बस अब थोड़े ही देर में सब रुखसत हो जायेगा। तुम भी तो छोड़ जाओगी मुझे। कैसे रहूंगी तुम्हारे बिना। तुम्हारे साथ बिताये ये एक महीने, मेरी ज़िन्दगी के सबसे खूबसूरत पल थे।
अरे रुको न, हाँ बालों को ऐसे ही खुला छोड़ दो, रात को शैम्पू कर लेना, डीप कंडीशन भी कर लेना, एक एक रेशा सुलझ जाएगा। वैसे भी तुम कभी कंघी तो करती नहीं। बस जी लो यहाँ मेरे साथ। और हाँ, देखो न भूल गयी कहना। ओवर एनालाइज न करो।
लीन स्ट्रीट पर घंटों चलना, ईस्ट ब्रॉड स्ट्रीट पे बस यूँ ही मुड़ कर चलते जाना। हील्स पहनने की आदत नहीं थी तुम्हारी। और उसने कहा था हमेशा चप्पल बैग में अख़बार के फोल्ड्स बीच रख कर चलना। उन्हें निकालती, हील्स को वापस बैग में डालती, बैग को झोले की तरह या तो कंधे पे हाथ के सहारे पीठ पर झुलाती चलती या पापा जैसे सब्जी लेकर आते थे वैसे लेकर चलती। ओह, कितना अच्छा था सिर्फ तुम्हारे साथ बातें करना।
तुम बदल क्यों गयी, माया? इतनी चुप क्यों हो गयी? बदली या पता नहीं चला कि बदल गयी। खैर, वैसी ही हो। बस चुप हो थोड़ा। शायद शांत हो गयी हो। न न, दरअसल अकेली लग रही हो मुझे, अकेली हो गयी हो। सब कुछ है, पर अंदर से सूख गयी हो, क्लांत हो, सूनी हो गयी हो तुम। क्यों माया?
और अगर हो भी, तो मैं क्यों सहूँ? तुम्हें मैंने तो नहीं छोड़ा! मैं तो चार साल पहले भी साथ थी, आज भी हूँ। पर तुम मुझसे तक रूठ गयी?
चलो जेनीज़ से आइस क्रीम खाते हैं!
'एक डार्क चॉकलेट और एक लेमन बटरमिल्क का स्कूप दे दीजिये भइया'
उसके चेहरे पर असमंजस का भाव देखकर हंस पड़ी थी तुम। कितनी प्यारी लग रही थी। कॉरपोरेट जैसे बंधे सधे बाल, कपड़ों पर एक भी क्रीज़ नहीं, और हंस पड़ी। उस वेश भूषा में इतनी तेज़ हंसी माया कि तुमने स्कूल जाने वाले बच्चों को भी मात दे दी।
फिर सँभालते हुए, फोन से नज़रें हटाकर, फ़ोन को पर्स में डालकर कहा, "मे आए हैव अ स्कूप ऑफ़ डार्क चॉकलेट एंड वन लेमन बटरमिल्क, प्लीज"
ऐसी मुस्कुराहट, माशा अल्लाह!
उस लड़के ने काउंटर के पीछे से कंधे उचकाकर कहा, "श्योर!"
और फिर हाथ में कार्ड, बिल, आइसक्रीम, चमच्च और टिश्यू पकड़ाते हुए कहा, "यू हैव डार्क, मिस्ट्रीयसली ब्राउन, ब्यूटीफुल आईज"
कैसे अवाक् हो गयी थी तुम! यार माया, यू एस है! यहाँ कोई भाग कर पीछा नहीं करेगा तुम्हारा। और वो क्यूट भी हुआ न तो भी लाइन नहीं मार रहा। कैज़ुअल हैं यहाँ सब।
"इंडियन आईज आर ब्यूटीफुल, मैकी। वेल, थैंक यू फॉर द आइसक्रीम एंड विल थैंक माय पेरेंट्स फॉर द जीन्स।"
अरे यार माया, क्या बोला तुमने यार! मैं तो चौंक गयी तुम्हे देखकर। चुप हो गयी हो, पर कॉन्फिडेंट और भी हो गयी हो यार। क्या हुआ इतने दिनों में?
कॉलेज में तो इत्ते से कॉम्प्लीमेंट में खुद की, दोस्तों की नींद ख़राब कर देती थी ये पूछ पूछ कर कि "मुझसे कोई गलती हुई क्या? कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं अनजाने में 'कम हिट ऑन मी' वाले सिग्नल्स देती हूँ?
बदल गयी हो माया। पर अच्छा है। पहले वाली दोस्त को मिस किया मैंने तुमसे मिलकर, पर अच्छा लगा।
तुम अब खुलकर हंसती नहीं, केवल काम में मशगूल रहती हो। हमेशा कुछ न कुछ नया करती रहती हो। क्यों माया? इसलिए कि अकेली हो गयी हो? घर के कोलाहल की जगह काम में कोलाहल ढूंढती हो? खुश हो न?
तुम अब समय पर खाती नहीं, केवल दिन में दो बार कुछ कुछ पेट में डाल लेती हो।
इसलिए न कि कोई पूछता नहीं कि क्या खाया? क्या बनाया? कि घर से कोई कॉल आना बंद हो गया। वो पूछता है, फिर भी नहीं खाती माया! कितना कहकर भेजा था कि ये वो फलां योगर्ट ट्राए करना वगैरह वगैरह पर तुमने केवल एक महीने दुःख में, काम में गुजार दिए माया।
तुम्हारा घर भी तो हो जायेगा न वो माया। क्यों सोचती हो इतना।
खैर, अब मैं एनालाइज करने लग गयी।
सुनो, तुम बहुत बहुत अच्छी हो! किसी के नाजायज़ नाराज़ होने पे शकल न बनाओ। किसी का दिल नहीं दुखाया तुमने, किसी से कोई शिकायत नहीं की। अपनी बदौलत, अपनी मेहनत और अपने संघर्ष से अपने फैसले लिए। तो दुखी मत हो।
लीन स्ट्रीट के बाद, वेस्टमिनिस्टर घूमना, अल्बेमरले स्ट्रीट घूमना। और घूमना और और खूब काम करना। तुम्हारा काम तुम्हारी पहचान है। तुम्हारी लेखनी तुम्हारे घर का वरदान - वो जोड़े रखेगी तुम्हे उन सबसे जो रूठ गए हैं।
और तुम शांत नहीं हुई, माया, तुमने अपनी सारी चुलबुलाहट, सारी ऊर्जा, सारा सारांश अपने भीतर जज़्ब कर लिया है। तुम बदली नहीं, तुम्हारी दुनिया तुमसे अपनी शांति न पाकर बदल गयी है। वो खुश है। उसे कोई और माया मिल जायेगी। मिल ही गयी है।
तुम हील्स उतार कर, बैग हाथ में लेकर, कॉफ़ी या चॉकलेट आइसक्रीम लेकर खूब चलो। कॉफ़ी हॉउस के बाहर बैठ कर खूब लिखो और घर जाकर खूब काम करो।
If life is about exploration,i am ready to expedite the process........words might ease out the journey....
Friday, May 27, 2016
Wednesday, May 11, 2016
Nationalism for JNU
When they scrub your fingers
with anti bacterial, alcoholic
hand sanitizer
and press your fingers
on a lit up screen from below,
when you - like that machine -
look and flash a smile at the foreign camera
and walk away with an air
of feigned confidence
dithering inside about the uncertainty
when you know inside that THAT name
on your visa
that stamp from YOUR embassy
that signature from YOU in confirmation
that need to be believed
to be trusted
certified
marked
responded to -
- that's when you know why
Your nation exists
beyond shadow lines
beyond denial.
That's when you know how
you exist as an Indian
over and above anything and any politics.
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