Tuesday, April 19, 2011

शाम और धूप

नीले आसमान के मैंने देखा


नीम के पत्तों को हटाते


अपनी कल्पनाशील आँखों के सामने से


पत्तों के कलेवर को झकझोर कर हटाते।



मैंने देखा- तेज़ चुबती किरणें


सूरज की चिलचिलाती किरणें ,


पत्तों से छन कर छल्ले बनाती किरणें


जमीन पर पत्तों की छाया गढ़ती किरणें ,


दिन के ढलते सिमट जाती हैं-


दुबक कर आँखें मीच लेती हैं।



धीरे धीरे शाम की सिंदूरी लालिमा


धूसरित होती


काली स्याही का दुपट्टा ओढ़े


अपने साथ उस छाया को भी


तारों की टिमटिमाती हस्ती में


विलीन कर देती है।


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