नीले आसमान के मैंने देखा
नीम के पत्तों को हटाते
अपनी कल्पनाशील आँखों के सामने से
पत्तों के कलेवर को झकझोर कर हटाते।
मैंने देखा- तेज़ चुबती किरणें
सूरज की चिलचिलाती किरणें ,
पत्तों से छन कर छल्ले बनाती किरणें
जमीन पर पत्तों की छाया गढ़ती किरणें ,
दिन के ढलते सिमट जाती हैं-
दुबक कर आँखें मीच लेती हैं।
धीरे धीरे शाम की सिंदूरी लालिमा
धूसरित होती
काली स्याही का दुपट्टा ओढ़े
अपने साथ उस छाया को भी
तारों की टिमटिमाती हस्ती में
विलीन कर देती है।
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