Saturday, August 31, 2013

यूँ ही.…. इत्तेफ़ाकन

सपनो की बोतल में  
बंद गुलाबी ख़त को 
समुन्दर में फेंक आई थी कभी.
     उसी रेतनुमा गुलाब की 
     मद्धम सुर्खी पर
     एक नाम लिखा है.
पर सपनों की उस बोतल में
इस बार मोम का ताला है
रेत नहीं चाहिए अब.
       बस गुलाबी रंग
       थोड़ी रूमानी शाम
       और ज़रा सा समुन्दर।

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