जीवन, सत्य और प्रेम के बीच पसरी एक अंतहीन खाई.. कभी कभी ऐसा लगा जैसे सफ़ेद धुले आसमान के नीचे, हिम श्रृंखला के ऊपर से, सूरज की अंतिम किरणों को चूमते बस कूद जाये - मौत से जंग लड़ने। पर बार बार कुछ छूटे कर्तव्य, कुछ रीते नयन, कुछ बचे हिसाब जैसे हर बार रोक लेते हों. जीजिविषा अलग चीज़ होती है. जीने की कला बिलकुल अलग. शायद दर्शन के इस अंतहीन अंतर्कलह के मध्य फंस गया था न निगलने न उगल पाने वाला वो निवाला।
परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है - यह बात समझती भी थी, जानती भी, अपनाती भी थी. पर परिवर्तन के इस व्यावहारिक परावर्तन को तमाम ज़िंदगियों में उतरता देखकर थोड़ी विस्मित थी.
रीना ने भीतरगांव के उस दलित कस्बे में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। शायद इसलिए कि कहीं और के छूटे कर्त्तव्य का निर्वहन वहाँ करके अपने आप को अपराधबोध से मुक्त कर सके. पर क्या मुक्ति सम्भव है? सब कुछ करने, महसूसने, टूटने और बिखरकर खुद को समेटने के बाद क्या कोई कभी भी मुक्त हो सकता है?
दोपहर में धूप से नहायी शैल श्रृंखला को उनींदी आखों से देखते हुए रीना ने चट्टान पर लेटे लेटे लगभग पूरे वृत्तांत को क्रमशः उलटते पलटते देखा? क्या हर बार हर सफलता की वजह परिस्थितियां और हर विफलता का कारण वही थी? क्या विश्वास करना अपने आप में एक विश्वासघात था? क्यूंकि हर विश्वास के पीछे खुद को छोडकर कहीं और अपने अस्तित्व को ढूंढना स्वयं के साथ विश्वासघात ही तो है?
कल शाम को गाँव की एक लड़की का बलात्कार हुआ. स्थानीय विधायक ने यह दुष्कर्म किया यह कह कर कि बलत्कृत युवती से विवाह कर वह उसे रानी बनाएगा और स्वयं को उसका रक्षक, औरों के लिए परमेश्वर और प्रदेश के लिए राजा। काश ज़िन्दगी केवल स्वयम्भूत समीकरणों पर चलती। काश! लोग - खासकर औरतें - केवल मांस का लोथड़ा और भावनाओं की पुलिया होतीं जिसे जब चाहे फाटक खोल कर आजाद करो और जब चाहे बंद करके दम घोंट दो. और हर बार इसी अपेक्षा के साथ कि परम पवित्र, पतिव्रता नारी का ममत्व स्वयं को त्याग कर अपना सर्वस्व उस जानवर को सौप दे! बलत्कृत युवती ने विवाह के दिन मंडप में ही खुद को आग लगा ली. स्थानीय मीडिया ने मामला खूब उछाला। पर हुआ क्या? जीता कौन? वही विधायक! आखिर वोटों की, समर्थन की राजनीति खेली थी. बेचारगी की हालत में, जनता के बहुमतों से गरीबों, दलितों और भीतरगांव का वह मसीहा जीत गया. उसकी शादी अंततः दिल्ली के एक मालदार विधायक की मालदार बेटी से हो गयी.
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