Friday, April 15, 2011

खाली अधूरे पन्ने पर कुछ शब्द लिखे थे मैंने-
तुम्हारे जाने के बाद।
अभी तक दीवारों पे लगे
मकड़ी के जालों को हटाया नहीं,
कोने में जमी धूल साफ़ तक नहीं की।
बहुत समझाया खुद को
कि दुबारा समेट लूँ
बिखरे उन लम्हों को-
तुम्हारे जाने के बाद ।

पर अब जा कर समझी हूँ कहीं
कि जाने के बाद लौट कर कोई आता नहीं।
तो धूप को आँचल पे,
धूल को तन पे,
शब्दों को मन में
दफ़न कर रखने कि ख्वाहिश
खुद को बहलाने का धोखा है।

और ठगना तुमने सिखलाया नहीं
सीख भी तो नहीं पाई-
तुम्हारे जाने के बाद।

6 comments:

  1. बहुत संवेदनशील ! समझ कर भी जब समझने को मन न करे ..ऐसे सूक्ष्म मनः स्थिति का उत्कृष्ट चित्रण !

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  2. इतना निपुण पाठक तो नहीं हूँ ..पर शुरुआत ने जो प्रत्याशा उत्पन्न की उसके अनुरूप ऐसा लगा की अचानक खत्म हो गया ...बस यही

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  3. after a long time i have read something in hindi which is original and truly emotional.nice work keep it up!!@@!!

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  4. Dheeraj, point noted...:)...pour in more criticism...:)

    Aukash, Avinash, Indrasis thanks to all..:)

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